रामगढो नरेश राजा वीरेंद्र सिंह लोधी || History of Raja Virendra Singh Lodhi

ग्वालियर संभाग का वह भाग जिसे वीरदायनी भूमि के ख़िताब से नवाजा है। हमारे शिखर पुरुषों ने, इस जिले में ग्वालियर से 170 किलोमीटर के अंतर्गत भांडेर तहशील रामगढो की वह जीण शीर्ण (गढ़ी) पहाड़ी पर बना महल जो की ग्वालियर रियासत की बहुत छोटी जागीर थी, शाहआलम औरंगजेब के सिपहसालार गाज़ी खान अपनी फतह का डंका बजाता हुआ इस और बढ़ता चला आ रहा था,  रास्ते में रामगढो पर उसने पानी पीने के लिए अपनी फौजी कुमुक को रोका और अपने सेवकों को आदेश दिया की इस जागीर के जागीरदार को उनकी सेवा में प्रस्तुत किया जाय। सिपेहसालार गाज़ी खान का हुकुम जब वीरेंद्र सिंह लोधी के पास पहुंचा तो उनके सेवकों ने कहा की राजा साहब जब तक भगवान शंकर की पूजा नहीं कर लेते तब तक न वो किसी से मिलते हैं - न अन्न-जल ग्रहण करते है। सेवको ने सारी दास्तान सिपहसालार गाजी खान से बयान कर दी। इस पर गाजी खान तिलमिला गया और हुकुम दिया गया की जागीर जब्त कर वीरेंद्र सिंह को ग्वालियर किले में कैद कर दिया जाय। इसका विस्तृत विवरण कलकत्ता म्यूजियम में राखी किताब, "हिन्दे वतन औरंगजेब" जिसे खुद गाज़ी खान ने अपने अनुभव पर लिखा है।

जब उसने वीरेंद्र सिंह लोधी को ग्वालियर किले के मान मंदिर महल के तहखाने में कैद कर लिया गया तो यहाँ निम्न बातें विचारणीय है...

१) सिपेहसालार क्यों इतना घबरा गया की उसने तत्काल ही वीरेंद्र सिंह को मौत की सजा नहीं दी ?

२) वह वीरेंद्र सिंह को अपनी फ़ौज में सम्मान सहित पद क्यों देना चाहता था ?

३) वीरेंद्र सिंह को उसने इस्लाम कुबूल करने पर क्यों मजबूर नहीं किया गया ?

४) ग्वालियर का किला जो सिर्फ राजाओं को कैद करने के लिए था वहां एक साधारण जागीरदार को ही वहां क्यों रखा ?

५) भगवान शंकर के दर्शनों के बिना, वह अन्न जल ग्रहण किये बिना वह मौत की नींद सो गया। तब उसकी मौत का मातम मानाने गाजी खान क्यों उपस्थित हुआ ?

हमारा इतिहास विभिन्न धर्मों में हुए शहीदों का विस्तृत विवरण यथा संभव प्राप्त हो जाता है पर "लोधियों" का यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा की किसी भी इतिहासकार ने इस जाती को सम्मान प्रदान नहीं किया। क्या सिर्फ इसलिए की वे अन्य जातियों की तरह "राजपुरुषों", "नवाबों", "सुल्तानों" अथवा "नगर पतियों" या "नगर सेठों" के पास जी हुजूरी नहीं कर पाए या वे सदैव अपने रोजमर्रा के कार्यों में ही व्यस्त बने रहे और पढ़े लिखे वर्ग ब्रह्मणो को वे प्रशन्न नहीं रख पाए जिसके कारण उनका कहीं नमो निशान इतिहास में नहीं मिलता। वीरेंद्र सिंह को दीपावली के 8 दिन पूर्व ग्वालियर किले में कैद किया गया था तब उन्होंने सिर्फ जेलर से कहा की मुझे आदि पुरुष भगवान शंकर की पुजा की इजाजत दे दी जाय तब ही में अन्न जल ग्रहण करूँगा पर बुत परस्ती तब सम्बव ही नहीं थी इसलिए दीपावली के एक दिन पूर्व ही उन्होंने अपने प्राणो को छोड़ा ।

कवी ने श्रंद्धांजलि अर्पित करते हुए लिखा है -


धर्म हेतु अन्न जल त्यागा

त्यागा न आदिपुरुष का ध्यान

ऐसे धर्म भगत वीरेंद्र को

शील कवी का शत शत प्रणाम


सन्दर्भ (Reference)

"हिन्दे वतन औरंगजेब" - गाज़ी खान

Comments

  1. दख्खन मे जो लोध लोधा लोधी समाज है ये मिर्झा राजा जयसिंह और राजा मानसिंह के साथ आये थे क्या लोध लोधा लोधी उत्तर भारत में कहा पे रहते थे❓ कोई बता सकता है❓

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