Thakur Ramdhan Singh Narwariya | स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठा.रामधन सिंह नरवरिया

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठा.रामधन सिंह नरवरिया

बहुमूल्य रत्नों से आच्छादित भारत वसुधा का आंचल कितना दैदित्यमान है ये सर्वज्ञात है,समयानुसार कई नर रत्न इस भारत वसुधा ने दिये जो स्वयं के लिये नहीं वरन् समाज व राष्ट्र के लिये जियें और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अडिग रहे, एवं देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिये प्रयत्नशील रहे जाग्रत रहे ऐसे ही ज्योर्तिमान मालिका के दैदित्यमान रत्न थे "श्री रामधनसिंह जी" श्री नरवरिया जी (मेम्बर साहब) का जन्म 23 नवम्बर 1910 को लोधीघार चौरासी के ग्राम असोखर तहसील गोरमी, जिला-भिण्ड (म.प्र.) में हुआ, आपके पिता का नाम ठा. श्री गंगाप्रसाद जी (जमींदार) एवं माता का नाम श्रीमती द्रोपदा देवी था।

प्राचीन गढ़ी असोखर में जमींदारी स्थापना

ग्वालियर राज्य में जमींदारी प्रथा का आरंभ 18वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में माना जाता है, इसी समय 'सरजे अंजनगांव' की संधी में भदावर, जटवारा, लोधीघार, गुर्जरघार, राजपूतघार के क्षेत्र महाराज दौलतराव सिंधिया के अधीन आ गये थे, तभी से सिंधिया जी ने इन क्षेत्रों में जमींदारी प्रथा का आरंभ किया इस प्रथा के अधीन प्राचीन गढ़ी  03  से  10  वर्ष के लिए गढी (भू-भाग) प्रतिष्ठित व्यक्ति को सौंपा जाता था। महाराजा जनकोजीराज (1827-1843) की मृत्यु के बाद स्थापित कौंसिल ऑफ रीजेन्सी के दौर में इजारेदारी प्रथा के जगह जमींदारी प्रथा ने ले ली थी,जमीदारी प्रथा में गढ़ी (भू-भाग) को दो भागों में बांटा गया था।

(1) अविभक्त जमींदारी

(2) पट्टीदारी जमींदारी 

पट्टीदारी जमींदारी में दो या अधिक व्यक्तियों को संयुक्त रूप से ग्राम गढी का जमींदार नियुक्त किया जाता था ऐसी ही एक प्राचीन गढ़ी असोखर में श्री नरवरिया जी के पिता ठा.गंगाप्रसाद की जमींदारी थी संबंधित रिकॉर्ड ग्वालियर स्टेट के राजस्व शाखा (जमींदारी काल) में सुरक्षित है तत्पश्चात् “मध्यभारत जमींदारी समाप्ति विघान" (क्रमांक 13 सन 1951) पारित कर 25 जून 1951 को जमींदारी प्रथा को मध्य भारत में समाप्त कर दिया गया एवं मध्य भारत भू-राजस्व तथा काश्तकारी विधान 1950 को जमींदारी ग्रामों में लागू किया गया व भू-राजस्व की वसूली करने के लिए प्रत्येक ग्राम में। "पटेल" नियक्त किये गये सो गंगा प्रसाद जमींदार असोखर के कनिष्ठ पुत्र सिकन्दर सिंह को ग्राम का पटेल नियुक्त किया गया।


आजादी के लिए संघर्ष

मेंबर साहब (नरवरिया जी) सन  1935 से ही चंबल संभाग में भारत माता की आजादी के लिए संघर्षशील रहे, एवं कांग्रेस के सच्चे सिपाही रहे कांग्रेस पार्टी भारत की आजादी के लिये गांधी जी,नेहरू नेतृत्व में राष्ट्रीय स्तर पर संघर्षरत् थी एवं क्रांतिकारी साहित्य एवं समाचार देने के आरोप में अंग्रेजों ने भारतीय कांग्रेस को गैर कानूनी घोषित कर दिया था, कांग्रेस का 50वां राष्ट्रीय सम्मलेन 1936 में लखनऊ में हुआ जिसकी अध्यक्षता पं.जवाहरलाल नेहरू ने की थी, अंग्रेजी पुलिस द्वारा किसी को भी इस सम्मेलन में भाग नहीं लेने दिया जा रथा,परन्तु मेम्बर साहब ने अपने साथियों के साथ इस सम्मेलन में भाग लिया, परन्तु आपको सम्मेलन स्थल से गिरफ्तार कर लिया गया और थाने में रखा गया, इस सम्मेलन में देश की आजादी के लिए रणनीति तैयार होना थी।

·       मेम्बर साहब ने 31 मार्च 1936 में एक वृद्व जिला राजनैतिक सम्मेलन मिहोना में हुये सम्मेलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई व अपना अमूल्य योगदान दिया और आजाद भारत की मांग रखी।

 

·       08 नवम्बर 1941 को भिण्ड मुख्यालय पर एक राज्य व्यापी सम्मेलन (अधिवेशन) आयोजित किया गया, जिसमें मेम्बर साहब की भूमिका महत्वपूर्ण रही इस अधिवेशन में गांधी जी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई ने पधारकर उद्घान किया व आजादी के संबंध में गांधी जी के विचार व आंदोलनों के रणनीति के बारे में क्षेत्रीय जनता को बताया एवं सत्याग्रह के लिए प्रेरित किया।

 

·       16 दिसम्बर 1941 को गोरमी में मेम्बर साहब ने एक सम्मेलन आहूत किया, जिसका उद्देश्य क्षेत्रीय जनता को आजादी की लड़ाई के लिए मानसिक व शारीरिक रूप से तैयार करना था, सम्मेलन सफल रहा परंतु आप अंग्रेजों के कोप का भाजक हो गये और अंग्रेजों ने आप पर लाठीचार्ज किया जिससे आपके दाहिने हाथ में गहरी चोट आई थी। कार्यक्रम में पातीराम नरवरिया, कैलाशनारायण कटंक, अमर सिंह, जुहूर मोहम्मद, लोहिया जी व अन्य क्रांतिकारी प्रमुख रूप से उपस्थित थे।

 

·       09 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन में क्षेत्रीय जनता के नेतृत्व में देश की आजादी के लिये मेहगांव की एक सभा में सभा स्थल पर भारत का तिरंगा फहराया एवं आजादी का बिगुल बजा दिया, बाद में आप भूमिगत हो गये एवं चम्बल संभाग में आजादी के लिए संघर्ष करते रहे।

 

राजनैतिक सफर

·       जून - 1936 को एक महत्वपूर्ण संवैधानिक परिवर्तन ग्वालियर स्टेट में किया गया, जब शासक ने मजलिस-ए-आम और मजलिए-ए-कानून के स्थान पर द्विसदलीय विधान मंडल जिन्हें प्रजासभा और सामंत सभा (जो बाद में राजसभा) कहलायी, जिन्हें विधायी कार्यों के अलावा प्रश्न, तथा पूरक प्रश्न पूछने बजट पर चर्चा करने की शक्तियां दी गई थी प्रजासभा व राजसभा के निर्वाचन 1945 में ही हो सकें एवं शासक (मुख्यमंत्री) को राजप्रसनाम से जाना जाता था, स्टेट में लागू की गई।

 

·       मेम्बर साहब 1936 में ग्वालियर स्टेट पंचायत बोर्ड गोरमी मण्डल के अध्यक्ष रहे। (पंचायत बोर्ड ग्वालियर) रियासत में न्याय प्रबंध के लिए संवत् 1908 (सन् 1912) में छोटे-मोटे विवाद के निपटारे के लिए गठित किया गया था। 

 

·       मध्य भारत से ग्राम अशोखर (गाढ़ी) के प्रथम व निरंतर सरपंच (अशोखर, नुन्हाड संयुक्त पंचायत) के रहे। 

 

·       सन 1940 में कृषि कार्य सुधार व ग्राम के विकाश के लिए गठित ग्वालियर स्टेट परगना बोर्ड के भी अध्यक्ष रहे।

 

·       पराधीन (गुलाम) भारत में ग्वालियर स्टेट में सन् 1945 में प्रथम आम निर्वाचन हुआ, जिसमें 20 प्रतिशत जनता को मतदान का अधिकार दिया गया था। ग्वालियर स्टेट में दो सदन थे प्रथम प्रजासभा (90 सदस्य) जिसमें 55 प्रत्यक्ष निर्वाचित व 15 सदस्य सरकारी व 20 सदस्य मनोनीत थे, द्वितीय सभा को राजसभा (समांत) में 40 सदस्य जिसमें 20 प्रत्यक्ष निर्वाचित व 12 सरकारी सदस्य थे। अतः श्री नरवरिया जी प्रजासभा (विधानसभा) में द्विसदनीय गोहद (गोहद व मेहगांव) से निर्विरोध सदस्य (विधायक) मनोनीत किये गये एवं क्षेत्रीय जनता का प्रतिनिधित्व ग्वालियर स्टेट में किया व उनकी समस्याओं को शासक (राजप्रमुख या तत्कालीन मुख्यमंत्री के समक्ष विधान मण्डल में रखा।

 

·       भारत की आजादी के बाद मध्य भारत राज्य में द्विसदनीय गोहद क्षेत्र से 1952 में मेम्बर साहब कांग्रेस पार्टी से (सन् 1952-1957 तक) निर्वाचित विधायक रहे (01 नवम्बर 1956 को फजल अली राज्य पुनर्गठन आयोग की अनुशंसा पर म.प्र.बना एवं मेम्बर साहब के प्रयास से पृथक मेहगांव क्षेत्र निर्मित हुआ अतः आपको मेहगांव का पितामह कहना अतिसंयोक्ति नहीं होगी)

 

·       सन 1957 से 1962 विधानसभा में कुख्यात डकैत गब्बरसिंह के हस्तक्षेप के कारण मात्र 150 वोटों से आप को पराजित होना पड़ा।

 

·        मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में आप तृतीय बार विधायक निर्वाचित हुए (सन 1962 से 1967 तक)

 

·       म.प्र. 20 सूत्रीय कमेटी में सदस्य रहे।


·       शिक्षक चयन, पंचायत सचिव, सोसायटी सचिव के चयन कमेटी में अध्यक्ष रहे।

 

·       गहन पशु चिकित्सा क्षेत्र में सुधार कमेटी के अध्यक्ष रहे।

 

·       म.प्र.राज्य प्रशासन सुधार आयोग व पूर्व मंत्री श्री नरसिंहराव दीक्षित के निजी  सलाहकार रहे।

 

·       कांग्रेस पार्टी में भी अध्यक्ष रहकर कई संगठनात्मक दायित्व प्रभार रहें।


महत्वपूर्ण उपलब्धियां

·       आजादी आने के पूर्व भिण्ड जिले की यह स्थिति थी कि नल व बिजली की कोई व्यवस्था नहीं थी, जिला मुख्यालय पर मात्र 01 हाईस्कूल था. जिले में मात्र 04 ही सडके थी एक भी नदी पर पुल नही था एक मात्र अनाज मण्डी मुख्यालय पर थी।

 

·       मेंबर साहब के प्रयासों से क्षेत्र के सदर अंचलों में गोरमी, मेहगांव, गोहद ग्रामीण अचलों में शासकीय स्कूल स्थापित कराये गये एवं शिक्षा के क्षेत्र में अद्वितीय कार्य किया।

 

·       . मेम्बर साहब के प्रयासों से पंचायत भवनों के निर्माण हेतु प्रयास किये गये,एवं विभिन्न विभागों के शासकीय भवन निर्मित करवाये गये।

 

·        प्रथम पंचवर्षीय योजना से क्षेत्रीय जनता को लाभान्वित कराया।

 

·       मेहगांव,गोहद मण्डी निर्माण एवं किसानों को शासकीय योजनाओं से लाभान्वित करानाऔर  बेरोजगारी,डकैतों के उन्मूलन के व्यापक प्रयास किये गये। 

 

·       सिंचाई की व्यवस्था हेतु पगारा डेम का खाका तैयार कर नहर व अन्य साधन किसानों को सुलभ कराये।

 

·       मेम्बर साहब के प्रयासों से मेहगांव, गोहद का बाजार विकसित हुआ,बाहरी व्यापारियों को यहां व्यापार करने को प्रोत्साहित किया एवं बाहरी मुद्रा का भिण्ड में निवेश कराया।

 

·        सघन पशु चिकित्सा के क्षेत्र में दुधारू पशुओं की नस्लों को संकरण कराकर वैज्ञानिकों के माध्यम से उन्नत नस्ल की पशु नस्लें उन्नत कराने का क्रांतिकारी कदम उठाया।

 

लोधी क्षत्रियों के लिए योगदान

मेम्बर साहब का लोधी समाज के लिए योगदान अमूल्य है जिसका संक्षिप्त विवरण निम्न है लोधी समाज के 52 राष्ट्रीय अधिवेशन पूर्ण हो चुके है।

·       सन 1941 में इटावा में आयोजित 23 वें राष्ट्रीय अधिवेशन में अपने साथियों के साथ पैदल चलकर भाग लिया एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 

·       इस सम्मेलन से प्रभावित होकर अखिल भारतीय (राष्ट्रीय) स्तर का तीन दिवसीय 25 वां सम्मेलन जो कि ग्राम असोखर में 10, 11, 12 मई 1946 को आयोजित हुआ जिसकी अध्यक्षता कुंजीलाल वर्मा, सुंदरलाल वर्मा (आई.सी.ए.जबलपुर) व विष्णुदयाल वर्मा (मैनपुरी) ने की इस सम्मेलन में संपूर्ण भारतवर्ष से लोधी क्षत्रिय समाज के बंधु सम्मिलित हुए का आयोजन कराया था।

 

·       इस सम्मलेन से मेंबर साहब के प्रयास से ग्वालियर राज्य के रेवेन्यू डिपार्टमेंट के तत्कालीन सचिव डी. के. जाधव ने लोधी कौम को "लोधी राजपूत" सरकारी दस्तावेज में लिखने का आदेश जारी किया जिसकी प्रति आज भी सुरक्षित रखी है।

 

·       मेंबर साहब ने भिंड जिला लोधी राजपूत संघ का गठन १९४६ में किया एवं समाज के अध्यक्ष निर्वाचित किये गय।

 

·       मेम्बर साहब ने 1950 में एक सात सदस्यीय कमेटी तैयार की जिसकी प्राथमिकता समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाज से खत्म करना था आपने दहेज़, मृत्युभोज, पर्दाप्रथा, नशाखोरी के खिलाफ बडा आंदोलन तैयार किया। 

 

·       मेंबर साहब म.प्र.में लोधी क्षत्रिय समाज के प्रथम विधायक होकर म.प्र.की राजनीति में लोधी क्षत्रिय समाज के प्रमख नेता थे एवं भिण्ड जिला मुख्यालय पर लोधी क्षत्रिय समाज के बालकों की शिक्षा की व्यवस्था हेतु लोधी छात्रावास निर्माण के लिए सन 1960 में आर्य नगर भिंड में भूखंड  क्रय किया एवं छात्रावास के निर्माण कार्य की नीव रखी है तभी आज भिण्ड जिले को एक लोधी छात्रावास आर्यनगर भिण्ड (मप्र) में सुलभ है। जिसे हरीसिंह नरवरिया (पूर्व विधायक) ने पूरा निर्माण कर तैयार किया व सुलभ कराया।

 

·       समाज के कई बेरोजगार युवकों को सरकारी नौकरियां दिलवाई व समाज के कई परिवार मुख्यधारा से जोड़ें।

 

असोखर ग्राम के लिए योगदान

·       ग्वालियर से भिण्ड रेल लाइन का निर्माण ०२ - १२ - १८९९  में चालू हुआ इसकी लंबाई ५१.९३  मील है इस लाइन पर पहले ०८ स्टेशन थे, मेम्बर साहब के प्रयत्न से ही इस लाइन पर ९वां स्टेशन असोखर के नाम से बनाया गया।

 

·       मेघपूरा से असोखर तक का पहुंचमार्ग मेम्बर साहब के प्रयास से ही १९५२ में निर्मित कराया गया।

 

·       अशोखर ग्राम को पोस्ट (डाक विभाग) बनाया गया जो बाद में नुनहड हो गई है।

 

·       अशोखर में प्राथमिक शाला भवन निर्मित कराया व जमीन दान में दी।

 

·       ग्राम मेघपुरा में पशु मेला प्रारंभ कराया।

 

·       ग्राम में तालाब का जीर्णोधार कराकर पंचायत भवन का कार्य पूर्ण कराया । 

निधन

मेंबर साहब १६ - १० - १९९१ को पंचतत्व में विलीन होकर कैलाशवासी हो गये।

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